रुद्रपुर के ट्रांज़िट कैंप में कुछ दिन पूर्व नशा कारोबार में लिप्त एक व्यक्ति द्वारा करन कश्यप निवासी ट्रांजिट कैंप की बेरहमी से पीट-पीटकर की गई हत्या ने शहर में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। करन की मौत के बाद जब उनके परिजनों को सांत्वना देने वरिष्ठ समाजसेवी और राम भक्त के रूप में लोकप्रिय सुशील गाबा पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे, तो उन्होंने मीडिया से बातचीत में बिना किसी का नाम लिए शहर की मलिन बस्तियों में फल-फूल रहे नशे के अवैध कारोबार पर चिंता जताई। उन्होंने प्रशासन से मांग की कि इस गंभीर समस्या पर सख्त कार्रवाई की जाए क्योंकि नशे की चपेट में आकर कई परिवार तबाह हो चुके हैं और यह खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है।
सुशील गाबा, जो अपनी साफ-सुथरी छवि और समाजसेवा के लिए जाने जाते हैं, न केवल नशे के खिलाफ बल्कि शहर की तमाम ज्वलंत समस्याओं पर सोशल मीडिया और मुख्यधारा की मीडिया के माध्यम से बेबाक राय रखते आए हैं। हालांकि, इस बार जब उन्होंने नशे के मुद्दे पर आवाज उठाई और मलिन बस्तियों का जिक्र किया, तो खुद को 'छोटू भैया नेता' कहलाने वाले कुछ स्वघोषित समाजसेवकों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इन लोगों का कहना है कि गाबा के बयान से उनकी छवि धूमिल हो रही है।
मगर यह विरोध करने वाले खुद कितनी साफ छवि रखते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। विरोध करने वालों में एक 'छोटू भैया नेता' रुद्रपुर में ब्याज माफिया के रूप में कुख्यात हैं, जिनके किस्से शहर की हर गली में सुने जा सकते हैं। कुछ साल पहले इन पर गरीबों को ऊंचे ब्याज पर पैसे देकर आर्थिक शोषण करने का आरोप लगा था, जिसके बाद पुलिस ने इन्हें कोतवाली में बैठाकर घंटों पूछताछ की थी। यही नहीं, एक मामूली विवाद के चलते इन्हें बीच चौराहे पर दो युवकों द्वारा पीटे जाने का वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था।
वहीं उनके सहयोगी दूसरे 'छोटू भैया नेता' की छवि भी कम विवादास्पद नहीं है। यह महाशय एक सड़क दुर्घटना में मृत व्यक्ति के परिजनों से कथित तौर पर मोटी रकम की दलाली कर चुके हैं, जबकि पीड़ित परिवार को न्याय की जगह ठगा हुआ महसूस हुआ। दलाली में माहिर इस नेता को खुद की पार्टी ने भी किनारे कर दिया और जनता ने विगत चुनाव में उन्हें करारी हार का स्वाद चखाया, जिससे वह तीसरे स्थान तक ही सिमट कर रह गए।
ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि यदि कोई ईमानदार और सामाजिक रूप से जागरूक व्यक्ति शहर में बढ़ रहे नशे के खिलाफ आवाज उठाता है, तो क्या उसे इस प्रकार की दबाव की राजनीति और चरित्र हनन का सामना करना पड़ेगा? क्या सही के पक्ष में खड़े होने वाले को चुप कराने की कोशिश की जाती रहेगी? पार्टी और प्रशासन दोनों को चाहिए कि वे इस पूरे मामले का संज्ञान लें और जो लोग अनुशासनहीनता फैलाकर नकारात्मक राजनीति कर रहे हैं, उन्हें सख्ती से रोका जाए। समाज तभी बदलेगा जब सच्चाई के पक्ष में खड़े लोगों का सम्मान और समर्थन किया जाएगा।
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