एक्सपोर्टेड प्रत्याशी’ पर गरमाया कुरैया का चुनावी मैदान,कांग्रेस गढ़ में कमजोर रणनीति से उतरी भाजपा, कुरैया सीट पर हार का खतरा

पंचायत चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही उधम सिंह नगर की कुरैया जिला पंचायत सीट चर्चा का केंद्र बन गई है। इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने जिस प्रत्याशी को मैदान में उतारा है, उसे लेकर लगातार विरोध के सुर सुनाई दे रहे हैं। भाजपा ने इस बार कांग्रेस पृष्ठभूमि से जुड़े उपेंद्र चौधरी की पत्नी कोमल चौधरी को टिकट दिया है, जिन्हें कभी यशपाल आर्य का करीबी माना जाता था। हाल ही में कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले उपेंद्र चौधरी ने पहले रुद्रपुर नगर निगम के मेयर पद के लिए टिकट की मांग की थी। परंतु जैसे ही यह सीट सामान्य घोषित हुई, उन्होंने नगर निगम क्षेत्र से रुख मोड़कर ग्रामीण क्षेत्र की ओर रुख कर लिया और कुरैया सीट से भाजपा समर्थित प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतरने की कोशिशें तेज कर दीं। अंततः पार्टी ने उन्हें अपना समर्थित उम्मीदवार घोषित कर दिया है।
हालांकि, यह फैसला अब भाजपा के लिए मुश्किलें भी पैदा कर रहा है। पार्टी के इस निर्णय के बाद पार्टी के भीतर ही विरोध के स्वर उठने लगे हैं। कार्यकर्ताओं का एक वर्ग कोमल चौधरी को अपनाने को तैयार नहीं है, उनका मानना है कि यह प्रत्याशी न केवल बाहरी हैं बल्कि भाजपा की मूल विचारधारा से भी ताल्लुक नहीं रखते। पार्टी में अंदरूनी असंतोष की स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिससे चुनावी समीकरण बिगड़ते नजर आ रहे हैं।
दूसरी ओर, इस सीट से कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी सुनीता सिंह भी मैदान में हैं, जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार से ताल्लुक रखती हैं और जिला बार एसोसिएशन के सचिव व वरिष्ठ कांग्रेस नेता सर्वेश सिंह की पत्नी हैं। उन्हें न केवल पार्टी का समर्थन प्राप्त है बल्कि क्षेत्र की जनता से भी भावनात्मक जुड़ाव देखने को मिल रहा है। कांग्रेस नेताओं, विशेषकर पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तिलकराज बेहेड़ ने भी भाजपा प्रत्याशी पर निशाना साधते हुए कहा है कि ओमेक्स जैसी आवासीय कॉलोनी में रहने वाला व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की पीड़ा को कैसे समझेगा। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या भाजपा को गांव में एक भी योग्य व्यक्ति नहीं मिला जो उन्हें शहर से प्रत्याशी "एक्सपोर्ट" करना पड़ा?
इन सभी कारणों से कोमल चौधरी की उम्मीदवारी भाजपा के लिए गले की फांस बनती नजर जा रही है। क्षेत्रीय समीकरण और स्थानीय असंतोष को देखते हुए अब यह कहना गलत नहीं होगा कि पिछले दो बार की भांति ही इस बार भी कुरैया सीट पर भाजपा की राह आसान नहीं है।गौरतलब है कि यह सीट परंपरागत रूप से कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों का गढ़ रही है और अब तक केवल एक बार ही भाजपा समर्थित प्रत्याशी को यहां जीत मिली है। ऐसे में भाजपा द्वारा कांग्रेस का दामन छोड़कर भाजपा में आए कमजोर और बाहरी प्रत्याशी की छवि वाले उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारना चुनावी रणनीति की एक बड़ी चूक के तौर पर देखा जा रहा है।

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एक्सपोर्टेड प्रत्याशी’ पर गरमाया कुरैया का चुनावी मैदान,कांग्रेस गढ़ में कमजोर रणनीति से उतरी भाजपा, कुरैया सीट पर हार का खतरा