रुद्रपुर। उत्तराखंड कांग्रेस में हाल ही में हुए संगठनात्मक फेरबदल ने तराई की राजनीति में भूचाल ला दिया है। प्रदेश अध्यक्ष से लेकर नगर अध्यक्षों तक नए चेहरों की घोषणा के बीच एक ओर जहां गणेश गोदियाल को प्रदेश की कमान सौंपी गई और वरिष्ठ नेताओं प्रीतम सिंह व हरक सिंह रावत को अहम जिम्मेदारियां मिलीं, वहीं दूसरी ओर किच्छा के विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री तिलक राज बेहड़ को इस बदलाव में मायूसी ही हाथ लगी। तराई का शेर कहे जाने वाले बेहड़ को इस बार कांग्रेस हाईकमान ने जैसे नज़रअंदाज़ ही कर दिया।
बेहड़ की नाराजगी की वजह भी साफ है। उन्होंने लगातार उधम सिंह नगर जिले के लिए सुमितर भुल्लर को जिला अध्यक्ष और रुद्रपुर महानगर अध्यक्ष के लिए संजय जुनेजा के नाम की पुरज़ोर पैरवी की थी। खुद बेहड़ ने दिल्ली दरबार में कई बार इन नामों को लेकर लॉबिंग की, ताकि संगठन में उनके समर्थकों को वरीयता मिल सके। लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने जैसे उनके सुझावों को ठंडे बस्ते में डाल दिया और दोनों पद उनके विरोधी खेमे में चला गया।
नतीजा ये हुआ कि उधम सिंह नगर में जिला अध्यक्ष की कुर्सी एक बार फिर हिमांशु गाबा को दे दी गई, जो पहले भी इस पद पर रह चुके हैं। वहीं, महानगर अध्यक्ष की जिम्मेदारी कांग्रेस ने महिला नेतृत्व को बढ़ावा देते हुए ममता रानी को सौंप दी — जो रुद्रपुर मेयर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रह चुकी हैं। यह नियुक्ति कांग्रेस की “महिला सशक्तिकरण” की लाइन से तो मेल खाती है, पर तिलक राज बेहड़ के समर्थकों को करारा झटका दे गई।


राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कांग्रेस हाईकमान अब बेहड़ पर भरोसा कम करता दिखाई दे रहा है। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी में बेहड़ को किनारे करने की रणनीतिक साजिश रची जा रही है ताकि आगामी विधानसभा चुनाव में नए चेहरों को मौका दिया जा सके। यह कदम बेहड़ के कद को सीमित करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
दूसरी ओर, सुमितर भुल्लर और संजय जुनेजा के समर्थकों में जबरदस्त नाराजगी है। दोनों नेताओं को भरोसा था कि इस बार संगठन में उन्हें जगह मिलेगी, लेकिन दोनों के अरमानों पर पानी फिर गया। इस फैसले से तराई क्षेत्र में कांग्रेस की आंतरिक गुटबाजी खुलकर सामने आ गई है।
सूत्रों की मानें तो रुद्रपुर के कई पार्षद — जो तिलक राज बेहड़ के करीबी माने जाते हैं — अब पार्टी छोड़ने का मन बना रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस के लिए यह फेरबदल “संगठन मज़बूती” से ज्यादा संगठन विभाजन का कारण बनता दिख रहा है। अब देखना दिलचस्प होगा कि बेहड़ खेमे की यह नाराजगी कब तक सुलगती है और कांग्रेस इसे कैसे संभालती है।
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